नई दिल्ली, [नितिन प्रधान]।
पूर्व सैनिकों की जिद के चलते वन रैंक वन पेंशन का मामला अभी और लटकने के आसार बन गए हैं। अगले तीन चार दिन में अगर इस समझौते पर पूर्व सैनिकों और सरकार के बीच सहमति नहीं बनी तो इस पर अमल चार-पांच महीने तक के लिए और टल सकता है। यदि ऐसा होता है कि इसका सबसे बड़ा नुकसान उन सैनिकों व अधिकारियों का होगा जो सिपाही से लेकर अन्य निचली रैंकों पर रह कर रिटायर हुए हैं। वैसे इस बात पर भी विचार हो रहा है कि सहमति नहीं बनने की सूरत में इसके लिए एक कमेटी का गठन कर दिया जाए।हालांकि यह भी इसके लागू होने में देरी की एक वजह बनेगी।
सरकार और पूर्व सैनिकों के बीच हो रही बातचीत अब मोटे तौर पर एक बिंदु पर अटकी हुई है। वह बिंदु है वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद इसकी समीक्षा अवधि को लेकर। सूत्र बताते हैं कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विवाद को हल करने में रुचि ले रहे हैं। उनके हस्तक्षेप के बाद ही पेंशन की समीक्षा की अवधि को दस साल से घटाकर पांच साल किया गया है। हालांकि नौकरशाही इसे अभी भी तर्कसंगत नहीं मान रही है। लेकिन प्रधानमंत्री की इच्छा को देखते हुए समीक्षा की इस अवधि पर अधिकारियों के बीच सहमति बन गई है। इस आधार पर यदियह