Tuesday, September 1, 2015

समझौता जल्द नहीं हुआ तो 4-5 महीने के लिए टल सकता है वन रैंक वन पेंशन

नई दिल्ली, [नितिन प्रधान]।

पूर्व सैनिकों की जिद के चलते वन रैंक वन पेंशन का मामला अभी और लटकने के आसार बन गए हैं। अगले तीन चार दिन में अगर इस समझौते पर पूर्व सैनिकों और सरकार के बीच सहमति नहीं बनी तो इस पर अमल चार-पांच महीने तक के लिए और टल सकता है। यदि ऐसा होता है कि इसका सबसे बड़ा नुकसान उन सैनिकों  अधिकारियों का होगा जो सिपाही से लेकर अन्य निचली रैंकों पर रह कर रिटायर हुए हैं। वैसे इस बात पर भी विचार हो रहा है कि सहमति नहीं बनने की सूरत में इसके लिए एक कमेटी का गठन कर दिया जाए।हालांकि यह भी इसके लागू होने में देरी की एक वजह बनेगी।

सरकार और पूर्व सैनिकों के बीच हो रही बातचीत अब मोटे तौर पर एक बिंदु पर अटकी हुई है। वह बिंदु है वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद इसकी समीक्षा अवधि को लेकर। सूत्र बताते हैं कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विवाद को हल करने में रुचि ले रहे हैं। उनके हस्तक्षेप के बाद ही पेंशन की समीक्षा की अवधि को दस साल से घटाकर पांच साल किया गया है। हालांकि नौकरशाही इसे अभी भी तर्कसंगत नहीं मान रही है। लेकिन प्रधानमंत्री की इच्छा को देखते हुए समीक्षा की इस अवधि पर अधिकारियों के बीच सहमति बन गई है। इस आधार पर यदियह लागू होता है तो सरकारी खजाने से हर साल 8500 करोड़ रुपये अतिरिक्त निकालने होंगे।


सरकार चाहती है कि वन रैंक लागू होने के बाद पेंशन में संशोधन के लिए इसकी समीक्षा हर पांच साल पर हो। जबकि पूर्व सैनिक प्रत्येक वर्ष पेंशन में बदलाव की जिद पर अड़े हैं। उनका कहना है कि हर वर्ष रिटायर होने वाले प्रत्येक रैंक के अधिकारी की पेंशन के मुताबिक रिटायर सैनिकों और अधिकारियों की पेंशन में भी संशोधन हो। जबकि सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का मानना है कि हर वर्ष इस तरह की समीक्षा करना काफी पेचीदा काम है। इतनी बड़ी संख्या में विविध रैंक वाले पेंशनर्स की पेंशन में हर साल संशोधन करना सरकारी मशीनरी के लिए कई तरह की दिक्कतें पैदा करेगा।

सूत्र बताते हैं कि सरकार इस एक बिंदु के अलावा पूर्व सैनिकों के तकरीबन सभी बिंदुओं पर सहमत है। सरकार इसलिए भी वन रैंक वन पेंशन पर सहमति बनाने की जल्दी में है क्योंकि आने वाले दो चार दिन में ही बिहार के विधानसभा चुनावों की घोषणा हो जाएगी। ऐसे में देश में आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। उसके बाद बिहार विधानसभा चुनावों तक सरकार के हाथ बंध जाएंगे। इतना ही नहीं, बिहार चुनावों के बाद तत्काल बाद संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू हो रहा होगा। सत्र शुरू होने के बाद संसद में इसे लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं जिसके चलते इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है।


सूत्र बताते हैं कि इसलिए सरकार भी चाहती है कि अगले दो तीन दिन में ही पूर्व सैनिकों को कोई रास्ता निकालना होगा ताकि सरकार आचार संहिता लागू होने से पहले इसके अमल की घोषणा कर सके।

माना जा रहा है कि यदि बिहार चुनाव की घोषणा तक कोई सहमति नहीं बनती तो सरकार के पास एक और विकल्प होगा कि किसी रिटायर या मौजूदा जज की अध्यक्षता में इस मुद्दे पर एक कमेटी गठित कर दी जाए। यह कमेटी जो तय करेगी सरकार उसकी रिपोर्ट के आधार पर इसे लागू कर सकती है। लेकिन इस प्रक्रिया का भी अर्थ केवल इसके अमल में देरी ही होगा। यह देरी सबसे ज्यादा सिपाही स्तर के पेंशनरोंपर भारी पड़ेगी, क्योंकि वन रैंक वन पेंशन पर अमल का सर्वाधिक लाभ इसी स्तर के लोगों को होगा। 1996 से पहले रिटायर हुए सिपाही बाद रिटायर हुए सिपाही से 82 फीसद कम पेंशन पा रहे हैं।

जबकि मेजर स्तर के अधिकारियों में यह अंतर मात्र 53 फीसद का है। 

सूत्रों के मुताबिक अब तक जिन मुद्दों पर सहमति बन चुकी है उनमें वन रैंक वन पेंशन लागू करने की कट आफडेट है जिसे पहली अप्रैल 2014 माना गया है। यानी इस तारीख से पहले रिटायर हो चुके सभी सैनिकों को इसका लाभ मिलेगा। लेकिन वन रैंक वन पेंशन पर अमल पहली जुलाई 2014 से मान्य होगा। यानी सभी लाभ इस तारीख के बाद से मिलेंगे। इस तारीख ले लागू होने के बाद पूर्व सैनिकों का जितना एरियर बनेगा वह उन्हें चार किस्तों में मिलेगा। लेकिन पूर्व सैनिकों की विधवाओं को यह लाभ एकमुश्त दिया जाएगा। दरअसल वनरैंक वन पेंशन पर दोनों पक्षों की बातचीत में तीन मसलों पर बातचीत अटकी हुई थी। दो मसलों पर अब सहमति बन गई है। केवल पेंशन की समीक्षा पांच साल में हो या हर साल, इसे लेकर पेंच फंसा हुआ है।

(Source-  Staffnews blog and Jagran )- See more at: http://www.jagran.com/news/national-one-rank-one-pension-may-sidestep-for-4-to-5-month-12814552.html#sthash.dCrM1y59.CPPh9ct6.dpuf

5 comments:

  1. 'वन रैंक वन पेंशन बिल्कुल ही नाज़ायज है'

    1 घंटा पहले

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    वन रैंक वन पेंशन के लागू होने से दो-तीन तरह के आर्थिक बोझ सामने आएंगे हालांकि भारत सरकार ने इस संबंध में कोई आधिकारिक आकड़ा अभी पेश नहीं किया है.

    कुछ लोग इसे वन टाइम आठ हज़ार करोड़ का बोझ बता रहे हैं तो कोई इसे 10 और 12 हज़ार करोड़ का बोझ बता रहा है.

    लेकिन जब मुद्रास्फिति सूचकांक आएगा हर साल या हर दस साल पर जब वेतन आयोग आएगा तो यह रक़म नौ और दस हज़ार करोड़ का भी हो सकता है.

    इसलिए इसके रक़म को लेकर स्पष्टता नहीं आई है.

    दूसरे लोग भी इसकी मांग कर सकते हैं. अभी रेलवे यूनियन वालों ने भी वन रैंक वन पेंशन की बात शुरू कर दी है.

    पुलिस और सीआरपीएफ़ वाले भी यह मांग कर सकते हैं इसलिए यह बोझ बहुत अधिक हो सकता है.

    बुरा हाल



    दूसरा फ़ौज के लोग 35 साल के उम्र में रिटायर हो जाते हैं. इसके बाद उन्हें कई जगहों पर विशेष सुविधा भी मिलती है नौकरियों में.

    तो मेरी नज़र में तो यह वन रैंक वन पेंशन बिल्कुल ही नाज़ायज है.

    एक बात यह भी है कि चाहे भारत सरकार वन रैंक वन पेंशन स्वीकार करे या ना करे लेकिन उसे मौजूदा बेंच स्कीम भविष्य में होने वाली बहालियों को लिए ख़त्म करनी होगी.

    इस स्कीम से सरकार दिवालिया हो सकती है. इसलिए 2004 में सरकार ने दूसरे विभाग के कर्मचारियों के लिए पेंशन स्कीम रद्द कर दिया और उसकी जगह दूसरी पेंशन स्कीम कंट्रीब्यूट्री पेंशन स्कीम ले आई.

    अब सभी के लिए ये कंट्रीब्यूट्री पेंशन स्कीम लाना होगा नहीं तो बहुत बुरा हाल होने वाला है.

    (बीबीसी संवाददाता निखिल रंजन से फ़ाइनेनशियल एक्सप्रेस के मैनेजिंग एडिटर सुनील जैन की बातचीत पर आधारित)

    

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  2. सरकार ने दो मानी आप एक मान लो 5 साल में दे तो रहे हे वेसे भी ये देश आप का भी हे आप की भी कुछ जुमेदारी बनती हे और लोग भी देश में आप लोगो ने अपनी इज्जत का ख्याल खुद ही रखना होगा अभी तक देश के लोग आप सब की जितनी इज्जत करते हे उतनी किसी की नही जय हिन्द

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  3. I think timing of revision should be acceptable.

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  4. I think timing of revision should be acceptable.

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  5. ना आप की ना सरकार की 3 साल की कर देनी चाहिए वेसे 5 साल तर्कसगत लगती हे पर हठ पर हे तो 3 साल कर देनी चाहिये पर वो नाजायज होगा जय हिन्द

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